Class 07 Chapter 01 इतने ऊँचे उठो Itne Unche Utho - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
Book-
इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥
नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥
नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो
नये राग को नूतन स्वर दो
भाषा को नूतन अक्षर दो
युग की नयी मूर्ति-रचना में
इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥
लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिंतन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।
जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है
तोड़ो बन्धन, रुके न चिंतन
गति, जीवन का सत्य चिरन्तन
धारा के शाश्वत प्रवाह में
इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।
चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥
अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हैं प्रतिपल साथ हमारे
दो कुरूप को रूप सलोना
इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥
शब्दार्थ-
गगन-आकाश सिंचित-सींचा हुआ वृष्टि-बारिश,वर्षा ज्वालाओं- लपटें
मलय पवन-मलय पर्वत से आने वाली हवा तूलिका- कूँची राग- सुरों का विशेष संयोजन
नूतन -नया मौलिक मूल रूप से नया पोषक - पुष्ट करने वाला
जीर्ण-शीर्ण- जर्जरित,पुराना द्योतक- जानकारी देने वाला
चिरंतन-सदा से चला आ रहा शाश्वत-सदा रहने वाला प्रतिपल-हर पल कुरूप-भद्दा
प्रश्नोत्तर
2. अति लघु उत्तर लिखिए -
(क)"देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से" - इस पंक्ति में 'एक दृष्टि' का क्या अर्थ है?
उत्तर- एक दृष्टि का अर्थ है कि जाति, रंग, लिंग आदि के कारण भेदभाव न कर सबको समता के भाव से देखना।
(ख) कवि नए हाथो से किसको सँवारने की बात कर रहे हैं?
उत्तर- कवि नए हाथो से वर्तमान के स्वरुप सँवारने की बात कर रहे हैं।
3. लघु उत्तर लिखिए-
(क) जीर्ण-शीर्ण का मोह त्याग कर कवि किस सृजन की स्थापना करना चाहते हैं?
उत्तर- जीर्ण-शीर्ण का मोह त्याग कर कवि नवीनता का संचार करना चाहते हैं और जीवन को परिवर्तनशील और गतिमय बनाना चाहते हैं।
(ख) विश्व किन ज्वालाओं में जल रहा है?
उत्तर- विश्व जाति-भेद, धर्म-वेश और रंग-द्वेष की ज्वालाओं में जल रहा है।
4. लिखिए
(ग) सप्रसंग भावार्थ लिखिए-
इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है।
देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥
उत्तर-
प्रसंग: प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक नया उत्सव से ली गई हैं । इस कविता का शीर्षक ’इतने ऊँचे उठो’ है। इस कविता के कवि ’श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ है।
संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियों में, सभी भेदभावों से ऊपर उठकर समाज में समानता का भाव जगाने की बात कही गई है।
अर्थ: प्रस्तुत पद्य पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हमें नए समाज निर्माण में अपनी नई सोच को जाति, धर्म, रंग-द्वेष आदि जैसे भेदभावों से ऊपर उठकर सभी को समानता की दृष्टि से देखना चाहिये। जिस प्रकार वर्षा सभी के ऊपर समान रूप से होती है उसी प्रकार हमें भी सभी के साथ समान रूप से पेश आना चाहिए। हमें नफरत की आग को समाप्त कर समाज में मलय पर्वत से आने वाली हवा की तरह शीतलता और शांति लाने का प्रयत्न करना चाहिए।
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